राम राम प्रिय श्रोताओं।, आज हम बात करेंगे उस अद्भुत क्षण की, जिसने न केवल अर्जुन को, बल्कि समस्त मानवता को चमत्कृत कर दिया...
जी हाँ, आज हम चर्चा करेंगे 'विश्वरूप दर्शन योग' की – श्रीकृष्ण के उस विराट और दिव्य रूप की, जो महाभारत के कुरुक्षेत्र में प्रकट हुआ।
तो आइए, मन को शांत करते हैं, आँखें बंद करते हैं और इस दिव्य रहस्य में प्रवेश करते हैं।"
"महाभारत के भीष्म पर्व में, भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देते समय अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया था।
यह वह क्षण था जब अर्जुन, युद्ध के मैदान में द्वंद्व और मोह से ग्रसित हो गया था।
वह अपने गुरुजनों, भाईयों और संबंधियों के खिलाफ शस्त्र उठाने से हिचक रहा था।
तब श्रीकृष्ण ने उसे ज्ञान दिया – 'मैं केवल रथ का सारथी नहीं हूँ, मैं इस सम्पूर्ण सृष्टि का मूल हूँ।'
और इसी सत्य को प्रकट करने के लिए उन्होंने अपना विराट, अनंत, और भव्य रूप दिखाया।"
"इस विराट रूप में क्या था?
अर्जुन ने देखा कि कृष्ण का शरीर असंख्य सिरों, असंख्य आँखों और अनगिनत भुजाओं से सजा हुआ है।
उनकी देह में ब्रह्मांड के सभी देवता, सभी प्राणी, और समस्त लोक समाए हुए थे।
अर्जुन ने देखा - जन्म और मृत्यु, सृजन और संहार, सब कुछ उसी एक स्वरूप में सजीव था।
उन्होंने सूर्य और अग्नि जैसे तेजस्वी रूपों को देखा, जो समस्त दिशाओं को भर रहे थे।
यह कोई साधारण दर्शन नहीं था – यह साक्षात परमात्मा की सत्ता का प्रकट होना था।"
"अर्जुन भयभीत हो गये।
उसने काँपते हुए हाथ जोड़े और कहा –
'हे प्रभु! मैं आपके इस विराट रूप को देखकर रोमांचित भी हूँ और भयभीत भी।
कृपया मुझे पुनः अपने सौम्य रूप में दर्शन दें।'
तब श्रीकृष्ण ने उसे फिर से अपना चतुर्भुज और फिर अपना सरल मानवीय रूप दिखाया।"
"तो साथियो, 'विश्वरूप दर्शन योग' हमें क्या सिखाता है?
यह सिखाता है कि परमात्मा केवल एक नाम या रूप नहीं है।
वे सम्पूर्ण सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं – हर धड़कन, हर लहर, हर साँस में।
जब हम अपने अहंकार को छोड़ते हैं, जब हम श्रद्धा से देखना सीखते हैं –
तभी हमें वह विराट रूप दिखाई देता है, जो सदा हमारे आस-पास मौजूद है।"
"तो मित्रों,
आज का संदेश यही है –
आँखें केवल देखने के लिए नहीं, समझने के लिए खोलिए।
और अपने भीतर भी उस विराट ब्रह्म को पहचानिए।
आशा है, इस आध्यात्मिक यात्रा ने आपके मन को कुछ क्षणों के लिए स्थिर और आनंदित किया होगा।
अगली कड़ी में फिर मिलेंगे एक और दिव्य ज्ञान के साथ।
तब तक के लिए...
जय माता दी ।