जब अफसर सादे कपड़ों में उतरता है मैदान में, तो सिर्फ कानून नहीं, इंसानियत भी बचती है। फिल्म ‘जाट’ के बहाने एक नजर, उस कहानी पर जो आज के भारत से कटती दिखाई देती है।
📋 परिचय:
क्या सनी देओल की फिल्म ‘जाट’ एक प्रेरणादायक देशभक्ति की गाथा बन सकती थी? शायद हां, अगर निर्देशक गोपीचंद मलिनेनी ने अपने स्कूली दिनों में नागरिक शास्त्र और भारतीय राजनीति की बारीकियों को सही से पढ़ा होता। इस लेख में हम एक गहराई से विश्लेषण करेंगे कि कैसे एक अफसर की महानता की थीम पर बनी यह फिल्म अपने उद्देश्य से भटक गई, और कैसे इसे बेहतर बनाया जा सकता था।
📖 1. एक ऐसा अफसर, जो वर्दी से नहीं, अपने कर्मों से पहचान बनाता है
फिल्म की शुरुआत एक जबरदस्त डायलॉग से होती है –
"जो भी हाथ में आता है, उसे ही हथियार बना लेता हूं..."
यह डायलॉग किसी सुपरहीरो की तरह सुनाई देता है, लेकिन असलियत में यह एक ऐसे अफसर की कहानी है जो सादे कपड़ों में भ्रष्टाचार से लड़ता है, बहनों की इज्जत की रक्षा करता है, और देश की मिट्टी से प्यार करता है।
🧠 2. लेकिन कहानी कहां चूक गई?
• नागरिक शास्त्र की गलतफहमियां: निर्देशक को यह समझना चाहिए था कि भारत में राष्ट्रपति सीधे अफसरों को आदेश नहीं देते। यह काम गृह मंत्रालय करता है।
• पुरानी फिल्मों जैसी स्क्रिप्ट: लगता है जैसे फिल्म 1970 के दशक की स्क्रिप्ट से बनाई गई हो, जहां हीरो अकेले ही तीन-तीन गुंडों को धूल चटा देता है।
उदाहरण: 'अमर अकबर एंथनी' की तर्ज पर अफसर अकेले सबकुछ करता है – लेकिन आज का दर्शक लॉजिक मांगता है।
🎬 3. एक्शन सीन्स बनाम कहानी
• फिल्म में चार एक्शन डायरेक्टर्स हैं – राम लक्ष्मण, पीटर हाइन और अन्य।
• लेकिन कहानी इन एक्शन सीन्स को जोड़ने के लिए बस एक धागा बनकर रह जाती है।
• हर 10 मिनट में एक फाइट, पर बिना ठोस वजह के।
🤷♂️ 4. क्या निर्देशक की गलती या समय की मांग?
गोपीचंद मलिनेनी की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई थी। अगर वो नागरिक शास्त्र और संविधान को गहराई से समझते, तो शायद यह फिल्म ‘जवान’ की तरह तगड़ी बनती।
फिल्म के कमजोर पहलू:
• राष्ट्रपति के आदेश पर CBI का पहुंचना – संवैधानिक रूप से गलत
• हीरो की फ्लैशबैक स्टोरी – सिर्फ जाति स्टीरियोटाइप से बचने के लिए जोड़ी गई
• स्लो मोशन का अत्यधिक उपयोग – क्या सनी देओल अब तेज़ नहीं चल सकते?
🤔 Relatable Example: जैसे गांव के रामेश्वर मास्टरजी ने RTI के जरिए ग्राम पंचायत का भ्रष्टाचार उजागर किया – उसी तरह असली अफसर सिस्टम के दायरे में रहकर बदलाव लाते हैं।
🔎 5. फिल्म बनाम रियलिटी – क्या नया भारत इसे स्वीकार करेगा?
• आज का दर्शक तथ्य और लॉजिक को प्राथमिकता देता है।
• सोशल मीडिया पर चीजें तेजी से वायरल होती हैं, लेकिन अगर फिल्म की स्क्रिप्ट पुरानी सोच से भरी हो तो वायरल होना मुश्किल है।
राणातुंगा जैसे आतंकी किरदार और इंटरनेशनल नेटवर्क का एंगल, बेमेल और बिना गहराई के लगता है।
🔁 6. क्या हो सकता था बेहतर?
✅ अगर हीरो की कहानी पंजाब के एक किसान से शुरू होती,
✅ जो साउथ में लोगों की ज़मीनें बिकती देखता है,
✅ और फिर अपने अनुभवों से लड़ाई शुरू करता है – तो कहानी ज़्यादा सच्ची और प्रेरणादायक होती।
🇮🇳 7. भारतीय संदर्भ – जनता क्या चाहती है?
आज की जनता हीरो से नहीं, सिस्टम में बदलाव से उम्मीद रखती है। चाहे वह ‘जवान’ हो, या ‘डंकी’, लोग चाहते हैं कि कहानी ज़मीनी हकीकत से जुड़ी हो।
🌟 निष्कर्ष: "सिर्फ एक्शन नहीं, उद्देश्य ज़रूरी है"
फिल्म ‘जाट’ में ताकत थी एक शानदार संदेश देने की – लेकिन वह स्लो मोशन में उलझ कर रह गई। अगर अगली बार कोई निर्देशक "सिस्टम से लड़ने वाले" हीरो को दिखाए, तो उसे संविधान, जनमानस और हकीकत को ध्यान में रखकर स्क्रिप्ट लिखनी होगी।
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