🔎 प्रस्तावना
दिल्ली की शराब नीति को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, नई एक्साइज पॉलिसी से दिल्ली सरकार को लगभग 2,002.68 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। यह रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पेश की। रिपोर्ट में कई गंभीर मुद्दे उठाए गए हैं, जिनमें लाइसेंस आवंटन में अनियमितताएं, सरकारी राजस्व की हानि और सप्लाई चेन पर असर शामिल हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे नई शराब नीति के चलते सरकार को भारी वित्तीय नुकसान हुआ और इसका आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ा।
🔹 नई शराब नीति में क्या बदला?
पहले दिल्ली में शराब की बिक्री का अधिकांश हिस्सा सरकारी निगमों के पास था, लेकिन नई नीति में निजी कंपनियों को भी लाइसेंस दिए गए। इसके तहत –
✅ एक व्यक्ति 24 से अधिक लाइसेंस ले सकता था, जबकि पहले केवल एक लाइसेंस मिलता था।
✅ थोक का लाइसेंस शराब वितरक और निर्माता कंपनियों को भी दिया गया।
✅ शराब बिक्री का कमीशन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया।
✅ रिटेल लाइसेंस निजी कंपनियों को खुली छूट के साथ दिए गए।
👉 इस बदलाव से न केवल सरकारी राजस्व में गिरावट आई, बल्कि बाजार में एकाधिकार और भ्रष्टाचार के रास्ते भी खुल गए।
📉 कैग रिपोर्ट में हुए बड़े खुलासे
1️⃣ नॉन-कंफर्मिंग वार्ड्स में दुकानें न खोलने से 941 करोड़ रुपये का नुकसान
दिल्ली में कई स्थानों पर शराब की खुदरा दुकानों को अनुमति नहीं दी गई, जिससे सरकार को करीब 941.53 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हुआ।
2️⃣ सेरेंडर्ड लाइसेंस का फिर से टेंडर न करने से 890 करोड़ रुपये का नुकसान
कई शराब दुकानों के लाइसेंस धारकों ने अपना लाइसेंस वापस कर दिया, लेकिन सरकार ने इन्हें दोबारा नीलामी में नहीं डाला। इससे 890 करोड़ रुपये का संभावित राजस्व सरकार को नहीं मिला।
3️⃣ कोविड-19 के नाम पर लाइसेंस फीस में छूट से 144 करोड़ रुपये की हानि
आबकारी विभाग की सलाह के बावजूद शराब विक्रेताओं को भारी छूट दी गई, जिससे 144 करोड़ रुपये का अतिरिक्त नुकसान हुआ।
4️⃣ क्षेत्रीय लाइसेंसधारियों से सही तरीके से फीस न वसूलने से 27 करोड़ रुपये की हानि
कई शराब विक्रेताओं से निर्धारित शुल्क सही ढंग से नहीं लिया गया, जिससे सरकार को 27 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा।
⚠️ नई नीति से कैसे बढ़ा भ्रष्टाचार?
✅ लाइसेंस प्रणाली में अनियमितताएं
🔹 पहले, एक व्यक्ति को केवल एक लाइसेंस मिल सकता था, लेकिन नई नीति में 24 से अधिक लाइसेंस लेने की अनुमति दी गई।
🔹 यह नीति मात्र 22 निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई।
🔹 100 करोड़ रुपये के निवेश की कोई आर्थिक जांच नहीं हुई, जिससे राजनीतिक हस्तक्षेप और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिला।
✅ सप्लाई चेन पर नकारात्मक प्रभाव
🔹 थोक विक्रेताओं को लाइसेंस देने में गड़बड़ी हुई।
🔹 नियम 35 के तहत थोक विक्रेताओं को अलग रखा जाना था, लेकिन उन्हें खुदरा और निर्माण लाइसेंस भी दे दिए गए।
🔹 इससे पूरी सप्लाई चेन प्रभावित हुई और बाजार में एकाधिकार बढ़ा।
✅ कार्टेलाइजेशन और बाजार में एकाधिकार
🔹 पहले कोई भी व्यापारी केवल 2 शराब की दुकानें संचालित कर सकता था, लेकिन नई नीति में यह सीमा बढ़ाकर 54 कर दी गई।
🔹 इससे कुछ ही कंपनियों को बाजार पर नियंत्रण मिल गया, जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा खत्म हो गई।
🧐 जनता पर इसका क्या असर पड़ा?
✅ महंगे दामों पर शराब बेची गई, जिससे उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी।
✅ सरकार को हुए नुकसान का असर अन्य सार्वजनिक सेवाओं के बजट पर पड़ा।
✅ छोटे व्यापारियों को बड़े कॉर्पोरेट समूहों के आगे टिकना मुश्किल हो गया।
🎯 निष्कर्ष – क्या नई शराब नीति असफल रही?
कैग की इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि नई शराब नीति से दिल्ली सरकार को भारी वित्तीय नुकसान हुआ। यह नीति न केवल सरकारी खजाने को कमजोर कर गई, बल्कि बाजार में भ्रष्टाचार, एकाधिकार और कार्टेलाइजेशन को भी बढ़ावा दिया।
🚨 अब सवाल यह उठता है कि इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी? क्या सरकार इस नीति को लेकर कोई नई रणनीति बनाएगी?
👉 आपका क्या विचार है? क्या सरकार को नई शराब नीति में बदलाव करना चाहिए? कमेंट में अपनी राय दें!