आज हम बात करेंगे "ज्ञान-विज्ञान योग" की – एक ऐसा योग जो हमें केवल जानकारी नहीं देता, बल्कि अनुभव के स्तर तक पहुंचाता है।
🌟 आज का विषय है: "ईश्वर की महिमा और ब्रह्म ज्ञान"।
भगवद गीता के सातवें अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं –
"ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानम् इदं वक्ष्याम्यशेषतः।"
अर्थात – "मैं तुम्हें सम्पूर्ण ज्ञान और विज्ञान के साथ बताऊँगा, जिससे तुम मुझे पूर्ण रूप से जान सकोगे।"
🔹 ज्ञान वह है जो हमें शास्त्रों, ग्रंथों और उपदेशों से प्राप्त होता है।
🔹 विज्ञान वह है जब वही ज्ञान हमारे जीवन का अनुभव बन जाता है।
ईश्वर की महिमा को जानना केवल शास्त्रों तक सीमित नहीं, बल्कि उसे हृदय से अनुभव करना ही असली ब्रह्म ज्ञान है।
जब हम ब्रह्मांड की विशालता देखते हैं – असंख्य तारे, ग्रह, जीव-जंतु, मौसम – तो हमें एक अदृश्य शक्ति का आभास होता है। वही शक्ति है ईश्वर।
📿 ईश्वर सर्वव्यापी हैं, हर कण में, हर भाव में।
🌿 उनकी महिमा असीम है – जैसे जल में शीतलता, अग्नि में ऊष्मा, सूर्य में प्रकाश, उसी प्रकार ईश्वर हर तत्व में समाहित हैं।
जब कोई साधक अपने भीतर झांकता है, ध्यान करता है, सेवा करता है – तो उसे यह अनुभूति होती है कि मैं केवल शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ। और यह आत्मा उस परमात्मा का अंश है।
🪔 यही ब्रह्म ज्ञान है –
🔸 जब ‘मैं’ मिट जाता है और ‘वह’ प्रकट होता है।
🔸 जब हम जान जाते हैं कि ईश्वर हमसे अलग नहीं, हममें ही हैं।
"ज्ञान-विज्ञान योग" का मार्ग हमें केवल जानकारी नहीं, बल्कि ईश्वर का अनुभव देता है।
तो चलिए, आज से हम इस ज्ञान को केवल समझने तक सीमित न रखें, बल्कि उसे जीना शुरू करें।
आरव एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। बढ़िया तनख्वाह, गाड़ी, बड़ा घर – सब कुछ था, लेकिन अंदर से खालीपन।
एक दिन थक हारकर वो उत्तराखंड के एक शांत गांव चला गया। वहाँ उसे एक वृद्ध साधु मिले – स्वामीजी। उनके चेहरे पर अद्भुत शांति थी।
आरव ने पूछा –
“स्वामीजी, आप हर दिन वही जीवन जीते हैं, बिना टीवी, बिना फोन, फिर भी इतने शांत कैसे हैं?”
स्वामीजी मुस्कुराए और बोले –
“बेटा, तूने दुनिया को जान लिया, अब खुद को जान। वही असली ज्ञान है – ब्रह्म ज्ञान। जब तू जान जाएगा कि तू कोई साधारण जीव नहीं, बल्कि ईश्वर का ही अंश है, तो शांति अपने आप मिलेगी।”
आरव ने उनके साथ कुछ दिन बिताए। ध्यान सीखा, मौन साधना की। और फिर एक दिन, ध्यान में उसे एक दिव्य अनुभव हुआ –
उसने अपने भीतर एक प्रकाश देखा। ऐसा लगा मानो वो खुद को नहीं, परमात्मा को देख रहा हो।
आँखें खुली तो वो रो रहा था। लेकिन वो आँसू दुख के नहीं थे – ज्ञान के, अनुभव के, ब्रह्म से मिलन के।
उस दिन से आरव बदल गया। अब वो अपने काम के साथ-साथ ध्यान करता, सेवा करता, और जीवन को एक नई दृष्टि से जीता।
उसे अब कोई बाहर से नहीं समझाना पड़ता था कि ईश्वर क्या है – अब ईश्वर उसके भीतर था।
क्या आपने कभी अपने भीतर झाँकने की कोशिश की है?
शायद उत्तर वहीं छिपा हो, जहाँ हम देखना ही नहीं चाहते।